मेरे भाई अवधेश चौधरी का न्यू एलवम सुने पसंद आऐ तो लाईक ,कमेंट और सेयर करे
जाने तुम कहाँ हो
जिन्दगी की शाम हो चली है,
जाने तुम कहाँ हो???
अरमान भी अब मेरे अर्थी चढ़ चली है,
जाने तुम कहाँ हो???
ना लौटकर आना था तो बताकर जाते,
बेकरारी में जिन्दगी कट चली है….।
जाने तुम कहाँ हो???
होंठ मुस्कुराते रहे तेरी जुदाई का गम सहकर भी,
आंखो में छुपी अब नमी ही नमी है!!!!
जाने तुम कहाँ हो????
सारा दर्द सारे दुख होठों पे आ ठहरी है।
जाने तुम कहाँ हो???
धुंधली होती मोहब्बत की निगाहें,
अब बंद होने लगी है।
जाने तुम कहाँ हो???
दर्द से तड़पती सांसे अब थमने लगी है,
जाने तुम कहाँ हो???
अल्फाज श्वेत के दर्द के ही निकल चले है,
जाने तुम कहाँ हो????
……श्वेता कुमारी
बहाना ढूंढ लिया
मैं जार-जार रोयी,
पर दिल ने खुश रहने का,
बहाना ढ़ुंढ़ लिया!!!
ना था जीने का कोई बहाना,
पर मर-मर के मैंने जीने का
एक बहाना ढुढ़ लिया।।
तुने दर्द दिया हजारों,
और जख्म से दिल भर दिया।
पर जिन्दगी ने हंसने का
बहाना ढूढ़ लिया।।
हंसते रहे होठ मेरे हर सफर में,
पर तेरी याद ने मेरे आंखों से
बहने का बहाना ढूढ़ लिया।।
…………..श्वेता कुमारी
कितना जरूरी था
खुद को थोड़ा-सा
वक्त देने के लिए,
तेरा मुझे अकेला कर
जाना भी कितना जरूरी था।
खुद के साथ मैं थोड़ा,
वफा कर सकूँ इसलिए!
तेरा मुझसे बेवफाई करना
भी कितना जरूरी था।।
रह लूं मैं खुद के साथ,
भी कभी-कभी!!
इसलिए तेरा, मेरे हाथ को झटके से
छुड़ा लेना कितना जरूरी था।।
बेपरवाह हो गई थी खुद से,
परवाह में तुम्हारे इस कदर!!
कि खुद की परवाह करने के लिए,
तेरा,मेरी परवाह ना करना भी कितना जरूरी था।।
खो दिया था कहीं खुद को
तेरी मोहब्बत में मैंने।
खुद को पाने के लिए तेरा मुझे
छोड़ जाना भी कितना जरूरी था।।
सज-सँवर सकूं खुद के लिए भी,
ढूंढ सकूं कुछ सहुलियतें अपने लिए भी!!
तेरा मुझे पसंद ना करना भी,
कितना जरूरी था।।
मैं कर सकूं खुद से प्यार बेपनाह,
जिसकी मैं हमेशा से हकदार थी!!!
तेरा मुझसे इस कदर नफरत करना भी
कितना जरूरी था।।
रह लूं खुद के साथ खुश,
चैन से बसर हो जीवन अपना!!!
तेरे साथ खुश रहने का सपना,
टूट जाना भी कितना जरूरी था।।
जी ना सकूंगी तेरे वगैर मैं कभी,
यही सोचकर मुझे चोट पहूंचाते थे ना तुम!!!
मुझे खुशी-खुशी जीकर तेरे गलतफहमी को,
झुठलाना कितना जरूरी था।।
पहचान बना सकूं खुद की भी,
खुद को जरा करीब से जान सकूं!!!
इसलिए तेरा मुझे सबके सामने,
ना पहचानना भी कितना जरूरी था।।
औकात बना सकूं मैं अपनी
जी सकूं खुद के लिए भी कभी!!!
तेरा मुझे मेरी औकात दिखाना भी,
कितना जरूरी था।।
कलम बोल सके कभी मेरी भी
खुद के लिए बना सकूं अपनी दुनिया भी!!!
तुम्हें मुझकों डॉट डपट कर ,
खामोश कर देना भी कितना जरूरी था।।।
चल सकूँ अकेले जीवन पथ पर,
केवल अपने ही दम पर।
बना सकूं खुद को अपना हमसफर,
तुझको मुझे छोड़ जाना भी कितना जरूरी था।।
………श्वेता कुमारी।।
नदी भी बोलती है
निर्जीव है,मुक है बोलेगी कैसे???
सोचकर नदी में जहर घोलते रहे।
जब बिन मौसम ही डूब रही प्रयाग,
तो मानो कि नदी भी बोलती है।।
विकास कर रहे हम कारखाने बना रहे,
और कचड़ा शान से नदी में बहा रहे।
अपना जीवन जब पड़ा प्रलय में,
अब तो जानो नदी भी दुख में खौलती है।।
गंगा को पवित्र कहकर मां बनाया,
और हर घर की गंदगी बहा रहे।
फिर जो तड़प कर जिन्दगी बहा रही,
मानो तुम नदी भी क्रोध में उबलती है।।
अब भी ना जो हम संभलेंगे,
प्रकृति से यूं ही खेलते रहे।
सच जान लो जीवन का कल,
कैसे नदी हर किसी को निगलती है।।
……….श्वेता कुमारी।।
काली का ये अवतार क्यों
काली का ये अवतार क्यों,
औरत के हाथ में तलवार क्यों।
औरत होती है कमअक्ल तो,
बोलो हाथों में वीणा का झंकार क्यों???
बोझ होती है बहु बेटियां अगर,
तो लक्ष्मी के रूप का अलंकार क्यों???
कमजोर है औरत-जात यदि तो,
तो उसे जन्म देने का अधिकार क्यों???
तुच्छ है, नीच है और अपावन है तो,
बोलो अर्धनारीश्वर प्रभु का आधार क्यों???
महिषासुर तो पुरूष था फिर,
दुर्गा ने किया उसका संहार क्यों???
………श्वेता कुमारी।।
कविता
तड़पता दिल,छलकती आंखे,
सिसकते मन को कितना बहलाये।
दर्द का कफन ओढ़े चीखती धड़कनें,
शब्दों के आह से इन्हें कबतक सहलाएँ।।
रो पड़ी ये धरा सिसक रहा आसमां मेरा,
दर्द से कह दो अब मेरे करीब ना आए।
ख्वाबों का कब्र सजा है देखो,
उसे कह दो अब आंसू ना बहाये।।
ये तन्हा रातें,ये सुलगते दिन,
सब है तोहफें उसी ने दिये।
निश्छल मन के दिवारों पर,
है जो छल के घाव उसी के दिये।।
मुद्दतों से ये नादा-ए-दिल,
तक रहे राह आश के दीप लिए।
तोड़ा जो धागा नेह का उसने,
क्यों कर जिद्द है श्वेत उसके लिए।।
………श्वेता कुमारी।।
मुझे बिखरने तो दीजिए
हसरतों का ये दौर गुजरने तो दीजिए,
अजी सब्र कीजिए मुझे बिखरने तो दीजिए।।
जरा और दिल पर चोट लगने तो दीजिए,
अजी दिल को और तड़पने तो दीजिए।।
नहीं पता था इसे औकात अपना,
जरा इसे अपनी जगह समझने तो दीजिए।।
दिवाना था यह धोखे से दिल को घर समझ बैठा,
अरे!! इसे अब फुटपाथ का पता दो दीजिए।।
नासमझ था दिल मेरा ये गुनाह कर बैठा,
मोहब्बत का कोई सख्त सजा तो दीजिए।।
नहीं समझ सकी ये दिल और जान की कीमत,
ठहरिए! जरा इसे दुनिया से अलविदा कहने तो दीजिए।।
………..श्वेता कुमारी
फिर भी कैसे खुश रह लेती हूं मैं
इतने दर्द कैसे सह लेती हूं मैं,
तेरे बिना कैसे रह लेती हूं मैं।
सांस भी अब बोझ लगता है,
जाने कैसे सीने में भर लेती हूं मै।।
रोने का दिल बहुत करता है,
पर आंसू भी पी लेती हूं मैं।।
खाली-खाली सा लगता है ये जहां,
फिर भी कैसे हंस लेती हूं मैं।।
खो गयी हूं यादों में तेरे,
पर कैसे जी लेती हूं मैं।।
मर रही हूं तड़प-तड़प के,
फिर भी कैसे खुश रह लेती हूं मैं।।
……..श्वेता कुमारी।।
दुश्मन का संहार करो
चीत्कार नहीं हूंकार भरो,
उठो जवानों प्रहार करो।
आंखो में अश्रुधार नहीं,
केवल उनमें अंगार भरो।।
थर्रा जाए दुश्मन का रोआं-रोआं,
मौत की भीख मांगे मन का कोना।
ऐसा कोई प्रतिकार करो,
उठो जवानों प्रहार करो।।
किसी फैसले और निंदा का,
अब ना इंतजार करो।
बस अब उठो जवानों,
सीधे दुश्मनों का संहार करो।।
देश के मेरे वीर जवानों,
देश तुम्हारे साथ है।
मां, बहने और सिन्दूर के,
सर पर तुम्हारे हाथ है।।
होश करो उठो जवानों,
हर खून के कतरे का।
प्रतिकार करो! प्रतिकार करो!
और हर दुश्मन का संहार करो।।
श्वेता चौधरी